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Monday, 30 July 2018

अंग जल | अंगिका किताब | सुधीर कुमार 'प्रोग्रामर' | Ang Jal | Angika Book | Sudhir Kumar 'Programmar'

अंग जल | अंगिका किताब | सुधीर कुमार 'प्रोग्रामर' 

Ang Jal | Angika Book | Sudhir Kumar 'Programmar'




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समर्पण

रीत के मीत!

कुमारी अनिता सिन्हा
सहायक शिक्षिका
बी0ए0(आनर्स), बी0टी0
एम0ए0(अंगिका) कॅ,

जौने हर गम के कम करलकै अरो साहित्य सेविका वनी के हर मोरचा पर तनी केॅ सम्भाली रहलोॅ छै। एतने नै ‘ए जी कराय दा अंगकि से पीजी’ के जिद्द करतेॅ-करतेॅॅ प्रथम श्रेणी से एम0ए0पास करीये कॅ दम मारलकै।
....

काव्यकार :- सुधीर कुमार सिंह ‘प्रोग्रामर’
आवरण आरो कम्पोजिंग :- निखिल चंदन आरो पल्लवी रानी
आई0 सी0 एस0 कम्प्यूटर, सुलतानगंज प्रकाशन वर्ष :- 16 जून 2016
प्रकाशक :- सरस्वती प्रकाशन, खड़िया-मुंगेर।
सर्वाधिकार :- प्रकाषक
मूल्य :- 54/-
संपर्क :- अंगलोक, पार्वती मिल
बाईपास रोड, सुलतानगंज
भागलपुर- 813 213 (बिहार)

93349 22674

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अनुक्रम
मनोॅ के बात
1. सरहप्पा 
कहै दादा सॅ इक पोता, कि बाबू याद आबै छै
कहींने नें हमर मैया, अबेॅ सिन्दूर लगाबै छै।
2. सांकृत्यायन 
साल कॅ सिंगार करै चैत महीना
जाड़ कॅे कगार करै चैत महीना।
3. समीर/परमानन्द 
हवा मॅे हवाई हो कबतक उड़ैभो
लगै छै बचलका खजाना बुड़ैभो।
4. सुरो 
नीन उचटी गेलै भियान होतै कहिया
रोटी पे हमरा तियोन होतै कहिया।
5. चकोर/आरोही 
फागुन के खुमारी में, तन-मन अजबारी छै
सालोॅ के मचानी पर, चैती केरोॅ पारी छै।
6. तेजनारायण/रानीपुरी 
यहाँ मौसम के धमकी से भला सागर डरैतै की?
अहो रौदा भरोसे पान के पत्ता फरैतै की?
7. अमरेन्द्र 
मौत केरोॅ डोॅर केकरा
ऊंठलै हिलोर केकरा।
8. प्रलय/प्रीतम 
बदरा रे!.. अँगना मे आबें तॅ जानौं
हमरो दरद मॅ समाबें तॅ जानौं।
9. सरल/भुवन 
खा-म-खा आँख तों दिखाबोॅ नय
तीर तरकस पॅ तों टिकाबोॅ नय।
10. हरेन्द्र/मस्ताना 
भूख छै हिन्दी के आरो, अंगिका के त्रास छै
एकदम दिल के दुमहला, पर इ दोनोॅ खास छै।
....
11. विजेता/दिलवर 
मुबारक हो रमजान पावन महीना।
खुषी सॅे हिमालय केॅ निकलै पसीना।
12. आमोद/ब्रह्मवादी 
पत्ता फूल हजार भरल छै तुलसी के गाछी में
जीयै के रसधार फरल छै तुलसी के गाछी मे
13. राही / अश्विनि
वर्षा के बाराती मेॅ, बादल कहार लागै
झिंगुर के तान तासा, बिजली बहार लागै।
14. अनिरूद्ध/निकुंज 
जेठो के दुपहरिया में तरबा गरमाबै छै
पानी छै पतालो में कुइयां झरबाबै छै।
15. राजकुमार/दिवाकर 
चिठ्ठी पठाबै डाक सेॅ मजमून के बगैर
जैसैं दही-बड़ा मिलै हो नून के बगैर।
16. सान्त्वना/मृदुला 
जल्दी लानोॅ सावन मेघा
सम्बदिया मन-भावन मेघा।
17. किंकर/नंदेष 
बोलोॅ उगलोॅ साँझ कहाँ छै
गाँधी-खूदीराम कहाँ छै।
18. गुल्टी/निराला 
कलम के पुजारी माँगे मैया तेरे द्वार में
षुभ सामाचार मिलै रोजेॅ अखबार में।
19. प्रेमी/विजय 
कहिनें सब निमझान हो बाबू
चौबटिया सुनसान छै बाबू।
20. तपन/मुरारी 
जन्मलै खेत मेॅ अर मरै खेत मेॅ
काम रौदा-बताषे करै खेत मेॅ।
.....
21. अंजनी/लोकेश 
बात बनाबै जानी-जानी
देह तनाबै जानी-जानी।
22. जगप्रिय/जनप्रिय 
हाकिम के बोली-चाली मेॅ छाली छै
हुनको काजू किसमिस भरलॉे थाली छै।
23. काब्यतीर्थ/छोटेलाल 
भूल झलकै कहाँ नदानी मेॅ
सब करलका भसैलेॅ पानी मेॅ।
24. रंजन/सत्या 
कभी हांस्सै कभी कानै किसानी चीज ऐसन छै
विना बादल केरोॅ बरसा, सुहानी चीज ऐसन छै।
25. गौतम/प्रदीप 
हम्में कर्ज उतारै वाला
हुनको दाव सुतारै वाला
26. उमानाथ/बैकुण्ठ 
गजब-गजब केॅ खेल खेलाबै चोर-सिपाही
अजमाबै कि के कत्तेॅ बरजोर सिपाही।
27. साथी/संध्या 
सत्तू मेॅ सत्तू मिलैभेॅ हो मीता
खैभे कि हमरा खिलैभेॅ हो मीता।
28. मनीष/हरिनंदन 
निकललै बात रानी-साहिबा केरोॅ पहेली सेॅ
बड़ॉे तूफान आबै केॅ खबर अैलै हवेली सेॅ।
29. भावानन्द/मोदी 
घोंसला जोॅ बनाबै तेॅ औवल लगै
जब चिड़ैया जगाबै तेॅ औवल लगै।
30. शिवनारायण 
अनटेटलोॅ सन बात बसाहा बोलै छै
सब केॅ आपनेॅ जात बसाहा बोलै छै।
....
31. विद्या/मीरा 
झरिया केॅ बोलाबै छै यहाँ बेंग आषाढ़ी
बुतरू सेॅ लोलाबै छै यहाँ बेंग आषाढ़ी।
32. मीणा/अनिता 
होतै वहा जे होना होतै
जे जे चाहबै ओना होतै।
33. बहादुर/मधुसूदन 
साँझ केॅ देहरी पर जलाबै दिया
आँचरोॅ आढ़ मेॅ मुस्कुराबै दिया।
34. प्रभाकर/योगेन्द्र 
आजादी के उत्सव मनाबोॅ हो भैया।
तिरंगा के रंग मेॅ रंगाबॉे हो भैया।
35. उलूपी/मीरा 
भोर होलै जगो, जगाबोॅ ते
घोंसला प्रेम के बनाबोॅ तेॅ।
36. नन्दलाल/बेचारा 
गीत गाथा रीत गंगा पार के
याद आबै छै कथा मझधार के।
37. अनिल/धीरज 
रस्ता-पैरा पर नै फेकोॅ भाँसोॅ-कूसोॅ
नै फेकोॅ धोखा से भी कोय थूक-खखासोॅ।
38. प्रहरी/कालजयी 
लागै छै वोटॉे के दिन फेरू अैलै
वैसने पुरनका ठो सीन फेरू अैलै।
39. भावुक/छन्दराज 
धरम-करम केॅ खिस्सा छोड़ोॅ
जे बचलोॅ छै, ओकरा जोड़ोॅ।
40. इन्द्रदेव/भानू 
माघ केॅ ओंस मेॅ फूल पेॅ
छै वहा जे छेलै पूल पेॅ।
....

मनोॅ के बात

आपनोॅ अंगिका भाषा के काव्य-दौरी मेॅ ‘अंगरथ’ के बाद ’‘अंगजल’ परोसय सेॅ पहिनें करोड़ां अंग जन सॅे आपनोॅ मनों के बात करै के मोन करै छै। मनेमन गौरव होय छै कि हम्में पहिलोॅ सॉस अंग धरती पर लेलियै, पहिलॉे दर्षन अंगजनपद के करलियै, पहिलॉे स्वाद अंग-मांटी लेलियै। दादी, माय, बाबू आरो आपने आरनी सेॅ केतारी के रोस नाकती सिसोही कॅे अंगिका के स्वाद चाखलियै। पहिलोॅ स्नेह-सत्कार, मान-सम्मान, अंगजनपद से पैलियै। आबॅे तेॅ हिन्दी हमरोॅ भूख आरो अंगिका, त्रास बनी गेलै। अै लेली अंगिका गजल दौरी में हम्में जिनका पढ़ी के आरो जिनका साथें रही के अंगिका सिखी रहलो छीयै हुनको नाम सेॅ समर्पित छै एक-एक टुकड़ा। ‘अंगजल’ के माध्यम सेॅ कन्खी भर कर्जा चुकाबै के प्रयास करने छीयै।

एकरा मेॅ आपनॉे कृति केॅ लोक-धुन के चासनी मेॅ डुबाय के, मंच पर चापठो पारी के गाबै गुनगुनाबै लायक गजल परसै के प्रयास करने छीयै। आपनोॅ जानते एक-एक गजल अंग मनीषी के नाम अर्पित करने छीयै। गजल बहर में कहै के प्रयास करने छीयै, मतर कुछ मात्रिक छंद में मिलतै। स्वीकार करियै, आरो सुवाद बताबे के कृपा करियै। संवेदनषील मनीषी-गण, अच्छा-बेजाय सुझाव जरूर दीयै। असरा मेॅ ! - सुधीर

जय-हिन्द! जय-हिन्दी ! जय-अंग ! जय-अंगिका।


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